Father Property Rights: देश की न्याय व्यवस्था में एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया है। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि बेटियों को भी अब अपने पिता की संपत्ति में पूरा हक मिलेगा। पहले सिर्फ बेटों को ही अधिक प्राथमिकता दी जाती थी लेकिन अब इस नए फैसले ने समाज की सोच को झकझोर दिया है। यह निर्णय समानता के अधिकार को मजबूत करता है और बेटियों के सम्मान को कानूनी आधार देता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चाहे बेटी शादीशुदा हो या अविवाहित, वह पिता की संपत्ति की बराबर की हकदार होगी। यह फैसला खासतौर पर उन परिवारों के लिए बड़ा संदेश है जो अब भी बेटियों को संपत्ति से दूर रखते हैं।
क्या कहता है कानून
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक मिलता है लेकिन वर्षों से इसे सामाजिक रूप से पूरी तरह लागू नहीं किया गया था। अब हाईकोर्ट ने इसे लेकर सख्ती दिखाई है और साफ किया है कि यदि पिता की संपत्ति है तो उस पर बेटियों का भी वैधानिक अधिकार है। इसका मतलब यह है कि बेटियों को सिर्फ दहेज या शादी में गिफ्ट देना ही कर्तव्य नहीं बल्कि उन्हें कानूनी हिस्सेदारी देना भी जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह हक सिर्फ हिंदू बेटियों के लिए नहीं बल्कि सभी धर्मों की बेटियों को समान रूप से मिलना चाहिए।
शादी के बाद भी अधिकार
अब तक यह भ्रम बना हुआ था कि बेटी की शादी हो जाने के बाद वह अपने मायके की संपत्ति से वंचित हो जाती है लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले ने इस सोच को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि चाहे बेटी की शादी हो गई हो या वह किसी दूसरे शहर में बस गई हो, उसका अधिकार उसके पिता की संपत्ति पर बना रहेगा। विवाह उसकी वैधानिक स्थिति को नहीं बदलता। यह फैसला उन बेटियों के लिए बेहद राहत देने वाला है जो समाजिक दबाव या पारिवारिक विरोध के चलते अपने अधिकार की मांग नहीं कर पाती थीं।
संपत्ति विवाद में राहत
यह फैसला उन सभी महिलाओं के लिए राहत का संदेश है जो वर्षों से पिता की संपत्ति को लेकर अदालतों के चक्कर काट रही थीं। अब कोर्ट के इस फैसले से उन्हें मजबूत कानूनी आधार मिल गया है। बेटियों को अब भाई या अन्य रिश्तेदार उनकी हिस्सेदारी से नहीं रोक सकेंगे। अगर पिता की मृत्यु हो गई है और वसीयत नहीं बनी है, तब भी बेटी को उसका कानूनी हिस्सा मिलेगा। अगर वसीयत है तो उसमें भी बेटी को शामिल करना अनिवार्य माना जाएगा। इस फैसले से अदालतों में चल रहे कई लंबे विवाद अब तेजी से सुलझ सकते हैं।
वसीयत और हक का संबंध
अगर कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बनाता है और उसमें बेटी का नाम शामिल नहीं करता है तो अब यह कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि वसीयत भी उत्तराधिकार कानून से ऊपर नहीं हो सकती। अगर बेटी को जानबूझकर वंचित किया गया है तो वह अदालत में जाकर दावा कर सकती है। कोर्ट ऐसी वसीयत को रद्द भी कर सकता है अगर उसे भेदभावपूर्ण माना जाए। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि माता-पिता की संपत्ति पर बेटी का हक सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि पूरी तरह से कानूनी और ठोस है।
संपत्ति के प्रकार पर अधिकार
फैसले के अनुसार बेटियों को सिर्फ पैतृक संपत्ति ही नहीं बल्कि स्वअर्जित संपत्ति में भी हक मिल सकता है अगर पिता ने मृत्यु से पहले कोई स्पष्ट वसीयत नहीं बनाई है। इसके अंतर्गत जमीन, मकान, बैंक बैलेंस, शेयर और अन्य चल-अचल संपत्ति आती है। अगर परिवार में सिर्फ बेटी और कोई पुत्र नहीं है तो वह सम्पूर्ण संपत्ति की वारिस बन सकती है। वहीं अगर बेटा और बेटी दोनों हैं तो संपत्ति का बंटवारा बराबर हिस्सों में होगा। इस फैसले से महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर भी एक मजबूत रास्ता मिलता है।
समाज में बढ़ेगा बदलाव
हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक सोच में बदलाव लाने वाला भी है। अब तक बेटियों को संपत्ति के नाम पर नजरअंदाज किया जाता था लेकिन अब वे अपने अधिकार को लेकर जागरूक हो रही हैं। यह फैसला समाज को एक स्पष्ट संदेश देता है कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होना चाहिए। इससे महिलाओं को हिम्मत मिलेगी और वे अपने हक के लिए आवाज उठाएंगी। साथ ही परिवारों में भी धीरे-धीरे यह सोच विकसित होगी कि बेटियों को भी परिवार का समान हिस्सा मिलना चाहिए।
अस्वीकृति
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी हाईकोर्ट के ताजा फैसले और भारतीय उत्तराधिकार कानूनों पर आधारित है। संपत्ति से संबंधित किसी भी निर्णय से पहले संबंधित अधिवक्ता या कानूनी सलाहकार से संपर्क करना जरूरी है। राज्य और धर्म के अनुसार संपत्ति कानूनों में कुछ अंतर हो सकते हैं। इसलिए किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले वैधानिक और अद्यतन जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। लेख में दी गई जानकारी समय-समय पर बदल सकती है।